अधिकारियों, नेताओं और सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का मामला : सरकार चाहे तो बदले सूरत, ब्यूरोक्रेसी के जाल में उलझ गया कोर्ट का आदेश !
प्रदेश के सरकारी प्राथमिक स्कूलों की हालत को लेकर याचिका करने वाले शिव कुमार पाठक का कहना है कि सरकार यदि चाहे तो कोर्ट के आदेश का पालन आसानी से हो सकता है। बेसिक शिक्षकों की आगामी भर्तियों के दौरान उनसे यह शपथ पत्र लिया जाए कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाएंगे। ऐसा न करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का विकल्प भी खुला हो। यदि हर स्कूल में एक शिक्षक का भी बच्चा पहुंच गया तो स्कूलों की हालत सुधरने में वक्त नहीं लगेगा। इसके लिए शिक्षकों को भर्ती के दौरान वेटेज दिया जा सकता है। पाठक कहते हैं कि, यूपी में हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ जबकि पंजाब में सरकार ने इसके के लिए कमिटी बना दी।• एनबीटी ब्यूरो, इलाहाबाद : शिक्षक दिवस पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने शिक्षकों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने की नसीहत दी है। हालांकि इस सम्बंध में 2015 में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सरकार ने अब तक कोई कमिटी नहीं बनाई है। सपा सरकार में आए आदेश के बाद इसके खिलाफ स्पेशल अपील और फिर रिव्यू पिटीशन तक दाखिल की गई। रिव्यू पिटीशन अब भी पेन्डिंग है। आदेश को आए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। इस बीच न तो सरकारी स्कूलों की हालत में कोई बड़ा सुधार हुआ न ही आदेश के पालन को लेकर कोई पहल।
दरअसल प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों की हालत को लेकर सुल्तानपुर के शिक्षक शिव कुमार पाठक ने कई याचिकाएं हाई कोर्ट में दाखिल की थीं। जिन पर हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने एक साथ सुनवाई करते हुए 18 अगस्त 2015 को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सरकार एक ऐसा कानून बनाए जिससे सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और नेताओं के बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही दाखिल दिलवाया जाए। इसके लिए कोर्ट ने मुख्य सचिव को 6 महीने का समय दिया था। कोर्ट का मानना था कि यदि सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और नेताओं के बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिल दिलवाया गया तो स्कूलों की हालत में सुधार होगा।
कोर्ट ने कठोर कार्रवाई का दिया था आदेश
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि जो लोग इसका पालन नहीं करते उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई हो। इस आदेश के बाद प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी और सरकारी कर्मचारियों में खलबली मच गई थी, लेकिन इस आदेश का पालन करने की बजाय सरकार ने इसके खिलाफ 2016 में हाई कोर्ट में स्पेशल अपील दाखिल कर दी। इतना ही नहीं जब स्पेशल अपील भी खारिज हो गई तो रिब्यू पिटीशन दाखिल कर दी गई जो अब भी लंबित है।
दरअसल प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों की हालत को लेकर सुल्तानपुर के शिक्षक शिव कुमार पाठक ने कई याचिकाएं हाई कोर्ट में दाखिल की थीं। जिन पर हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने एक साथ सुनवाई करते हुए 18 अगस्त 2015 को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सरकार एक ऐसा कानून बनाए जिससे सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और नेताओं के बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही दाखिल दिलवाया जाए। इसके लिए कोर्ट ने मुख्य सचिव को 6 महीने का समय दिया था। कोर्ट का मानना था कि यदि सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और नेताओं के बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिल दिलवाया गया तो स्कूलों की हालत में सुधार होगा।
कोर्ट ने कठोर कार्रवाई का दिया था आदेश
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि जो लोग इसका पालन नहीं करते उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई हो। इस आदेश के बाद प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी और सरकारी कर्मचारियों में खलबली मच गई थी, लेकिन इस आदेश का पालन करने की बजाय सरकार ने इसके खिलाफ 2016 में हाई कोर्ट में स्पेशल अपील दाखिल कर दी। इतना ही नहीं जब स्पेशल अपील भी खारिज हो गई तो रिब्यू पिटीशन दाखिल कर दी गई जो अब भी लंबित है।
अधिकारियों, नेताओं और सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का मामला : सरकार चाहे तो बदले सूरत, ब्यूरोक्रेसी के जाल में उलझ गया कोर्ट का आदेश !
Reviewed by CNN World News
on
September 07, 2018
Rating:
No comments: